धर्म एवं दर्शन >> भारत के पवित्र तीर्थ स्थल भारत के पवित्र तीर्थ स्थलनारायण भक्त
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विभिन्न धर्मों के अनुयायियों के आस्था के केंद्रों–पवित्र तीर्थस्थलों–का रोचक वर्णन...
भारत के पवित्र तीर्थ स्थल तीर्थ का अभिप्राय
है पुण्य स्थान, अर्थात् जो अपने में पुनीत हो, अपने यहाँ आनेवालों में भी
पवित्रता का संचार कर सके। तीर्थों के साथ धार्मिक पर्वों का विशेष संबंध
है और उन पर्वों पर की जानेवाली तीर्थयात्रा का विशेष महत्त्व होता है। यह
माना जाता है कि उन पर्वों पर तीर्थस्थल और तीर्थ-स्नान से विशेष पुण्य
प्राप्त होता है, इसीलिए कुंभ, अर्धकुंभ, गंगा दशहरा तथा मकर संक्रांति
आदि पर्वों को विशेष महत्त्व प्राप्त है। पुण्य संचय की कामना से इन दिनों
लाखों लोग तीर्थयात्रा करते हैं और इसे अपना धार्मिक कर्तव्य मानते हैं।
पुण्य का संचय और पाप का निवारण ही तीर्थ का मुख्य उद्देश्य है, इसलिए मानव समाज में तीर्थों की कल्पना का विस्तार विशेष रूप से हुआ है। श्रीमद्भागवत में भक्तों को ही तीर्थ बताकर युधिष्ठिर विदुर से कहते हैं कि भगवान् के प्रिय भक्त स्वयं ही तीर्थ के समान होते हैं।
प्रस्तुत पुस्तक में विभिन्न धर्मों के अनुयायियों के आस्था के केंद्रों–पवित्र तीर्थस्थलों–का रोचक वर्णन है। ये न केवल आपकी आस्था और विश्वास में श्रीवृद्धि करेंगे, बल्कि आपको!!मानव जीवन के मर्म का सार भी बताएँगे। पढ़ते हुए आपको साक्षात् उस तीर्थ का दर्शन हो, यह इस पुस्तक की विशेषता है। यदि आपका मन निर्मल है, और हमें विश्वास है कि वह है, तो आप घर बैठे ही तीर्थ का पुण्य-लाभ प्राप्त करेंगे।
पुण्य का संचय और पाप का निवारण ही तीर्थ का मुख्य उद्देश्य है, इसलिए मानव समाज में तीर्थों की कल्पना का विस्तार विशेष रूप से हुआ है। श्रीमद्भागवत में भक्तों को ही तीर्थ बताकर युधिष्ठिर विदुर से कहते हैं कि भगवान् के प्रिय भक्त स्वयं ही तीर्थ के समान होते हैं।
प्रस्तुत पुस्तक में विभिन्न धर्मों के अनुयायियों के आस्था के केंद्रों–पवित्र तीर्थस्थलों–का रोचक वर्णन है। ये न केवल आपकी आस्था और विश्वास में श्रीवृद्धि करेंगे, बल्कि आपको!!मानव जीवन के मर्म का सार भी बताएँगे। पढ़ते हुए आपको साक्षात् उस तीर्थ का दर्शन हो, यह इस पुस्तक की विशेषता है। यदि आपका मन निर्मल है, और हमें विश्वास है कि वह है, तो आप घर बैठे ही तीर्थ का पुण्य-लाभ प्राप्त करेंगे।
रामेश्वरम्
भारत के चार धामों और बारह ज्योतिलिंगों में एक तमिलनाडु में स्थित
रामेश्वरम् दक्षिण भारत का तीसरा सबसे बड़ा मंदिर है। शंखाकार रामेश्वरम्
एक द्वीप है, जो एक लंबे पुल द्वारा मुख्य भूमि से जुड़ा हुआ है। 151 एकड़
भूमि में स्थित मद्रास-एगमोर-तिरुचिरापल्ली-रामेश्वरम् रेल-मार्ग पर
तिरुचिरापल्ली से 270 कि. मी. की दूरी पर, रामेश्वरम् रेलवे स्टेशन से
लगभग 2 कि. मी. दूर यह मंदिर द्रविड़ शैली का उत्कृष्ट नमूना है। इसे
स्वामीनाथ मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर के पूर्वी द्वार पर
दस और पश्चिमी द्वार पर सात मंजिलोंवाला गोपुरम् है। इसके 4,000 फीट लंबे
बरामदे संसार के सबसे लंबे बरामदे माने जाते हैं। प्रत्येक बरामदा 700 फीट
लंबा है। बरामदे के स्तंभों पर की गई उत्तम कोटि की सुंदरतम नक्काशी
दर्शनीय है।
बारहवीं सदी में श्रीलंका के राजा पराक्रमबाहु ने इस मंदिर का गर्भगृह बनवाया था। इसके बाद अनेक राजा समय-समय पर इसका निर्माण करवाते रहे। भारत के इस अद्वितीय मंदिर का निर्माण लगभग 350 वर्षों में पूरा हुआ।
रामेश्वरम् मंदिर के गर्भगृह में रामनाथ स्वामी के प्रतीक के रूप में जो शिवलिंग है, उसकी स्थापना श्रीराम और सीता ने मिलकर की थी। इसीलिए इस शिवलिंग को ‘रामलिंग’ भी कहा जाता है। रामलिंग की दाहिनी ओर पार्वती मंदिर में प्रत्येक शुक्रवार को पार्वतीजी का श्रृंगार किया जाता है। रामनाथ मंदिर के उत्तर में भगवान शिवलिंगम् और उसके पास विशालाक्षी देवी का मंदिर है।
रामेश्वरम् का श्वेत पत्थरों से निर्मित गगनचुंबी रामस्वामी मंदिर उत्कृष्ट शिल्पकला और सुंदरता की दृष्टि से पर्यटकों के लिए आकर्षण का मुख्य केंद्र है। मुख्यद्वार, कलात्मक स्तंभ और गलियारे उच्च कोटि की द्रविड़ वास्तुकला के खूबसूरत नमूने बड़े ही आकर्षक हैं। पूर्व-पश्चिम में 865 फीट लंबी और उत्तर-दक्षिण में 650 फीट चौड़ी दीवारें काफी ऊँची हैं। लंबाई की दृष्टि से यह मंदिर संसार का अन्यतम मंदिर है।
रामनाथ स्वामी मंदिर के विस्तृत परिसर में स्थित उल्लेखनीय प्रमुख मंदिरों के शेषशायी भगवान विष्णु का मंदिर विशेष रूप से दर्शनीय है। राम नाथ स्वामी के मूल मंदिर के सामने शंकरजी के वाहन नंदी की मूर्ति है, जिसकी जीभ बाहर की ओर निकली हुई है। दाहिनी ओर विघ्नेश्वर गणेशजी, पास ही कार्तिकेयजी, थोड़ा आगे भगवान श्रीराम का मंदिर और इसके पूर्व में राम, सीता, हनुमान, सुग्रीव आदि की मूर्तियाँ हैं। शिल्प की दृष्टि से यह मंदिर बहुत ही सुंदर है।
रामनाथ मंदिर परिसर में 22 कुंड हैं। लोगों का विश्वास है कि इन कुंडों में स्नान करने से कई रोगों से मुक्ति मिल जाती है। मंदिर के पूर्वी गोपुरम् के सामने समुद्र-तट को ‘अग्नितीर्थ’ कहा जाता है। पहले अग्नितीर्थ में स्नान कर गीले वस्त्रों सहित सभी कुंड़ों में स्नान किया जाता है।
रामेश्वरम् से लगभग 2 कि. मी. दूर गंधमादन पर्वत है। इस पर भगवान राम के चरण अंकित हैं। यहाँ एक झरोखा है। कहते हैं, श्रीरामजी ने इसी झरोखे से लंका पर आक्रमण के पूर्व समुद्र के विस्तार को मापा था। यहाँ अगस्त्य मुनि का आश्रम है। गंधमादन पर्वत से रामेश्वरम् मंदिर तथा द्वीप का मनोहारी दृश्य दिखाई देता है। रामनाथपुरम् के उत्तर-पूर्व नौ ग्रहोंवाला नव पाशनम मंदिर है, जिसे देवी पट्टनाम भी कहा जाता है। लक्ष्मणतीर्थ रामेश्वरम् से 2 कि. मी. दूर है। यहाँ पर लक्ष्मणेश्वर शिवमंदिर है। यहाँ से लौटते समय तीर्थयात्री सीतातीर्थ कुंड में स्नान करते हैं तथा श्रीराम और पंचमुखी हनुमान के दर्शन करते हैं। यहाँ से कुछ आगे खारे जल का रामतीर्थ नामक एक विशाल सरोवर है।
शुक्रवार मंडप में लक्ष्मण के विभिन्न रूपों की मूर्तियाँ दर्शनीय हैं। इस मंडप में आठ स्तंभों में काली चामुंडा, राजेश्वरी आदि देवियों की कलात्मक मूर्तियाँ भी देखने योग्य हैं। मंदिर के उत्तरी-पश्चिमी हिस्से में भगवान के आभूषणों का सुरक्षित भंडार है। सोने-चाँदी के आभूषणों के इस भंडार की सुरक्षा के लिए कड़ा प्रबंध है। इसे देखने के लिए निर्धारित शुल्क देना पड़ता है। इस भंडार के निकट ही श्वेत संगमरमर निर्मित भगवान विष्णु की मूर्ति है। इस मूर्ति में सेतुबंध भगवान विष्णु और लक्ष्मीजी को जंजीरों में बँधा दिखाया गया है। इस संबंध में एक पौराणिक कथा प्रचलित है।
इन मंदिरों के अलावा नटराज मंदिर, नंदी मंडप आदि भी दर्शनीय हैं।
रामेश्वरम् के साथ एक पौराणिक कथा जुड़ी हुई है। इस कथा के अनुसार भगवान राम ने रावण का वध किया था। रावण ब्राह्मण था, इसलिए ब्राह्मण-हत्या के पाप से मुक्ति के लिए भगवान राम ने शिव की आराधना करने का संकल्प किया। इसके लिए उन्होंने हनुमानजी को कैलास पर्वत पर जाकर शिवजी से मिलने और उनकी कोई उपयुक्त मूर्ति लाने का आदेश दिया। हनुमानजी कैलास पर्वत गए, किंतु उन्हें अभीष्ट मूर्ति नहीं मिली। अभीष्ट मूर्ति प्राप्त करने के लिए हनुमानजी वहीं तपस्या करने लगे। इधर हनुमानजी के कैलास पर्वत से अपेक्षित समय में न आने पर श्रीराम और ऋषि-मुनियों ने शुभ मुहूर्त में सीताजी द्वारा बालू से निर्मित शिवलिंग को स्वीकार कर लिया। उस ज्योतिर्लिंग को सीताजी और रामजी ने जब चंद्रमा नक्षत्र में, सूर्य वृष राशि में था, ज्येष्ठ शुक्ला दशमी, बुधवार को स्थापित कर दिया। यह स्थान रामेश्वरम् के नाम से जाना जाता है।
कुछ समय बाद हनुमानजी शिवलिंग लेकर कैलास पर्वत से लौटे, तो पहले से स्थापित बालुका निर्मित शिवलिंग को देखकर क्रुद्ध हो गए। उनका क्रोध शांत करने के लिए श्रीरामजी ने उनके द्वारा लाए गए शिवलिंग को भी बालूनिर्मित शिवलिंग के बगल में स्थापित कर दिया और कहा कि रामेश्वरम् की पूजा करने के पहले लोग हनुमानजी द्वारा लाए गए शिवलिंग की पूजा करेंगे। अभी भी रामेश्वरम् की पूजा के पहले लोग हनुमानजी द्वारा लाए गए शिवलिंग की पूजा करते हैं। हनुमानजी द्वारा लाए शिवलिंग को ‘काशी विश्वनाथ’ कहा जाता है।
कहा जाता है, इसी स्थान से समुद्र पार कर राम ने लंका पर आक्रमण किया था। यहीं से समुद्र में सेतु-निर्माण का कार्य आरंभ हुआ था। इसीलिए यह स्थान सेतुबंध रामेश्वरम् के नाम से भी जाना जाता है। लंका-विजय के बाद लौटते समय विभीषण ने राम से कहा कि इस सेतु से दूसरे लोग भी समुद्र पार कर लंका पर और लंकावासी इस ओर आकर आक्रमण कर सकते हैं, इसलिए इस पुल को तोड़ देना चाहिए। विभीषण की बात मानकर राम ने धनुष की नोक से पुल तोड़ दिया था। इसलिए इस स्थान को ‘धनुषकोटि’ कहा जाता है।
रामेश्वरम् में विभिन्न अवसरों पर धार्मिक उत्सव होते रहते हैं। यहाँ जनवरी-फरवरी में तैराकी पर्व की धूम रहती है और जुलाई-अगस्त में प्रभु-विवाह (तिरुकल्याणम्) का उत्सव मनाया जाता है। चैत्र माह में देवताओं का अन्नाभिषेक, ज्येष्ठ माह में रामलिंग-पूजा, वैशाख में दस दिनों तक वसंतोत्सव, नवरात्रि पर दस दिनों का उत्सव, दशहरे के अवसर पर अलंकार सामारोह, आश्विन माह में त्रिदिवसीय कार्तिक उत्सव, मार्गशीर्ष (अगहन) में आर्द्रा-दर्शन उत्सव तथा महाशिवरात्रि उत्सव धूमधाम से मनाए जाते हैं।
कैसे पहुँचें–रामेश्वरम् तक पहुँचने के लिए रेल एवं परिवहन सेवाएँ उपलब्ध हैं। निकटतम स्टेशन मंडप है। रामेश्वरम् धाम को समुद्र ने मुख्य भूमि से अलग कर दिया है। मंडप और पभवन रेलवे स्टेशनों के बीच देश का सबसे बड़ा रेलपुल है। मदुरै से रेल या बस द्वारा रामेश्वरम् आसानी से पहुँचा जा सकता है। रामेश्वरम् का निकटतम हवाई अड्डा रामेश्वरम् से 173 कि. मी. की दूरी पर मदुरै है।
कहाँ ठहरें–रामेश्वरम् में ठहरने, के लिए लॉज, धर्मशालाएँ और पर्यटन विभाग के गेस्ट हाउस उपलब्ध हैं।
क्या खरीदें–रामेश्वरम् में विक्रय के लिए तरह-तरह की वस्तुएँ तैयार की जाती हैं, जैसे–सजावटी झालरें, लैंप, गुच्छे, मंदिरों की आकृति के शो-केस आदि। इनके अलावा शंख, मनके, ताड़ के पत्तों से बनी आकर्षक वस्तुएँ भी खरीदी जा सकती हैं। ये वस्तुएँ रामनाथ स्वामी मंदिर के आस-पास बाजार में मिल जाएँगी।
बारहवीं सदी में श्रीलंका के राजा पराक्रमबाहु ने इस मंदिर का गर्भगृह बनवाया था। इसके बाद अनेक राजा समय-समय पर इसका निर्माण करवाते रहे। भारत के इस अद्वितीय मंदिर का निर्माण लगभग 350 वर्षों में पूरा हुआ।
रामेश्वरम् मंदिर के गर्भगृह में रामनाथ स्वामी के प्रतीक के रूप में जो शिवलिंग है, उसकी स्थापना श्रीराम और सीता ने मिलकर की थी। इसीलिए इस शिवलिंग को ‘रामलिंग’ भी कहा जाता है। रामलिंग की दाहिनी ओर पार्वती मंदिर में प्रत्येक शुक्रवार को पार्वतीजी का श्रृंगार किया जाता है। रामनाथ मंदिर के उत्तर में भगवान शिवलिंगम् और उसके पास विशालाक्षी देवी का मंदिर है।
रामेश्वरम् का श्वेत पत्थरों से निर्मित गगनचुंबी रामस्वामी मंदिर उत्कृष्ट शिल्पकला और सुंदरता की दृष्टि से पर्यटकों के लिए आकर्षण का मुख्य केंद्र है। मुख्यद्वार, कलात्मक स्तंभ और गलियारे उच्च कोटि की द्रविड़ वास्तुकला के खूबसूरत नमूने बड़े ही आकर्षक हैं। पूर्व-पश्चिम में 865 फीट लंबी और उत्तर-दक्षिण में 650 फीट चौड़ी दीवारें काफी ऊँची हैं। लंबाई की दृष्टि से यह मंदिर संसार का अन्यतम मंदिर है।
रामनाथ स्वामी मंदिर के विस्तृत परिसर में स्थित उल्लेखनीय प्रमुख मंदिरों के शेषशायी भगवान विष्णु का मंदिर विशेष रूप से दर्शनीय है। राम नाथ स्वामी के मूल मंदिर के सामने शंकरजी के वाहन नंदी की मूर्ति है, जिसकी जीभ बाहर की ओर निकली हुई है। दाहिनी ओर विघ्नेश्वर गणेशजी, पास ही कार्तिकेयजी, थोड़ा आगे भगवान श्रीराम का मंदिर और इसके पूर्व में राम, सीता, हनुमान, सुग्रीव आदि की मूर्तियाँ हैं। शिल्प की दृष्टि से यह मंदिर बहुत ही सुंदर है।
रामनाथ मंदिर परिसर में 22 कुंड हैं। लोगों का विश्वास है कि इन कुंडों में स्नान करने से कई रोगों से मुक्ति मिल जाती है। मंदिर के पूर्वी गोपुरम् के सामने समुद्र-तट को ‘अग्नितीर्थ’ कहा जाता है। पहले अग्नितीर्थ में स्नान कर गीले वस्त्रों सहित सभी कुंड़ों में स्नान किया जाता है।
रामेश्वरम् से लगभग 2 कि. मी. दूर गंधमादन पर्वत है। इस पर भगवान राम के चरण अंकित हैं। यहाँ एक झरोखा है। कहते हैं, श्रीरामजी ने इसी झरोखे से लंका पर आक्रमण के पूर्व समुद्र के विस्तार को मापा था। यहाँ अगस्त्य मुनि का आश्रम है। गंधमादन पर्वत से रामेश्वरम् मंदिर तथा द्वीप का मनोहारी दृश्य दिखाई देता है। रामनाथपुरम् के उत्तर-पूर्व नौ ग्रहोंवाला नव पाशनम मंदिर है, जिसे देवी पट्टनाम भी कहा जाता है। लक्ष्मणतीर्थ रामेश्वरम् से 2 कि. मी. दूर है। यहाँ पर लक्ष्मणेश्वर शिवमंदिर है। यहाँ से लौटते समय तीर्थयात्री सीतातीर्थ कुंड में स्नान करते हैं तथा श्रीराम और पंचमुखी हनुमान के दर्शन करते हैं। यहाँ से कुछ आगे खारे जल का रामतीर्थ नामक एक विशाल सरोवर है।
शुक्रवार मंडप में लक्ष्मण के विभिन्न रूपों की मूर्तियाँ दर्शनीय हैं। इस मंडप में आठ स्तंभों में काली चामुंडा, राजेश्वरी आदि देवियों की कलात्मक मूर्तियाँ भी देखने योग्य हैं। मंदिर के उत्तरी-पश्चिमी हिस्से में भगवान के आभूषणों का सुरक्षित भंडार है। सोने-चाँदी के आभूषणों के इस भंडार की सुरक्षा के लिए कड़ा प्रबंध है। इसे देखने के लिए निर्धारित शुल्क देना पड़ता है। इस भंडार के निकट ही श्वेत संगमरमर निर्मित भगवान विष्णु की मूर्ति है। इस मूर्ति में सेतुबंध भगवान विष्णु और लक्ष्मीजी को जंजीरों में बँधा दिखाया गया है। इस संबंध में एक पौराणिक कथा प्रचलित है।
इन मंदिरों के अलावा नटराज मंदिर, नंदी मंडप आदि भी दर्शनीय हैं।
रामेश्वरम् के साथ एक पौराणिक कथा जुड़ी हुई है। इस कथा के अनुसार भगवान राम ने रावण का वध किया था। रावण ब्राह्मण था, इसलिए ब्राह्मण-हत्या के पाप से मुक्ति के लिए भगवान राम ने शिव की आराधना करने का संकल्प किया। इसके लिए उन्होंने हनुमानजी को कैलास पर्वत पर जाकर शिवजी से मिलने और उनकी कोई उपयुक्त मूर्ति लाने का आदेश दिया। हनुमानजी कैलास पर्वत गए, किंतु उन्हें अभीष्ट मूर्ति नहीं मिली। अभीष्ट मूर्ति प्राप्त करने के लिए हनुमानजी वहीं तपस्या करने लगे। इधर हनुमानजी के कैलास पर्वत से अपेक्षित समय में न आने पर श्रीराम और ऋषि-मुनियों ने शुभ मुहूर्त में सीताजी द्वारा बालू से निर्मित शिवलिंग को स्वीकार कर लिया। उस ज्योतिर्लिंग को सीताजी और रामजी ने जब चंद्रमा नक्षत्र में, सूर्य वृष राशि में था, ज्येष्ठ शुक्ला दशमी, बुधवार को स्थापित कर दिया। यह स्थान रामेश्वरम् के नाम से जाना जाता है।
कुछ समय बाद हनुमानजी शिवलिंग लेकर कैलास पर्वत से लौटे, तो पहले से स्थापित बालुका निर्मित शिवलिंग को देखकर क्रुद्ध हो गए। उनका क्रोध शांत करने के लिए श्रीरामजी ने उनके द्वारा लाए गए शिवलिंग को भी बालूनिर्मित शिवलिंग के बगल में स्थापित कर दिया और कहा कि रामेश्वरम् की पूजा करने के पहले लोग हनुमानजी द्वारा लाए गए शिवलिंग की पूजा करेंगे। अभी भी रामेश्वरम् की पूजा के पहले लोग हनुमानजी द्वारा लाए गए शिवलिंग की पूजा करते हैं। हनुमानजी द्वारा लाए शिवलिंग को ‘काशी विश्वनाथ’ कहा जाता है।
कहा जाता है, इसी स्थान से समुद्र पार कर राम ने लंका पर आक्रमण किया था। यहीं से समुद्र में सेतु-निर्माण का कार्य आरंभ हुआ था। इसीलिए यह स्थान सेतुबंध रामेश्वरम् के नाम से भी जाना जाता है। लंका-विजय के बाद लौटते समय विभीषण ने राम से कहा कि इस सेतु से दूसरे लोग भी समुद्र पार कर लंका पर और लंकावासी इस ओर आकर आक्रमण कर सकते हैं, इसलिए इस पुल को तोड़ देना चाहिए। विभीषण की बात मानकर राम ने धनुष की नोक से पुल तोड़ दिया था। इसलिए इस स्थान को ‘धनुषकोटि’ कहा जाता है।
रामेश्वरम् में विभिन्न अवसरों पर धार्मिक उत्सव होते रहते हैं। यहाँ जनवरी-फरवरी में तैराकी पर्व की धूम रहती है और जुलाई-अगस्त में प्रभु-विवाह (तिरुकल्याणम्) का उत्सव मनाया जाता है। चैत्र माह में देवताओं का अन्नाभिषेक, ज्येष्ठ माह में रामलिंग-पूजा, वैशाख में दस दिनों तक वसंतोत्सव, नवरात्रि पर दस दिनों का उत्सव, दशहरे के अवसर पर अलंकार सामारोह, आश्विन माह में त्रिदिवसीय कार्तिक उत्सव, मार्गशीर्ष (अगहन) में आर्द्रा-दर्शन उत्सव तथा महाशिवरात्रि उत्सव धूमधाम से मनाए जाते हैं।
कैसे पहुँचें–रामेश्वरम् तक पहुँचने के लिए रेल एवं परिवहन सेवाएँ उपलब्ध हैं। निकटतम स्टेशन मंडप है। रामेश्वरम् धाम को समुद्र ने मुख्य भूमि से अलग कर दिया है। मंडप और पभवन रेलवे स्टेशनों के बीच देश का सबसे बड़ा रेलपुल है। मदुरै से रेल या बस द्वारा रामेश्वरम् आसानी से पहुँचा जा सकता है। रामेश्वरम् का निकटतम हवाई अड्डा रामेश्वरम् से 173 कि. मी. की दूरी पर मदुरै है।
कहाँ ठहरें–रामेश्वरम् में ठहरने, के लिए लॉज, धर्मशालाएँ और पर्यटन विभाग के गेस्ट हाउस उपलब्ध हैं।
क्या खरीदें–रामेश्वरम् में विक्रय के लिए तरह-तरह की वस्तुएँ तैयार की जाती हैं, जैसे–सजावटी झालरें, लैंप, गुच्छे, मंदिरों की आकृति के शो-केस आदि। इनके अलावा शंख, मनके, ताड़ के पत्तों से बनी आकर्षक वस्तुएँ भी खरीदी जा सकती हैं। ये वस्तुएँ रामनाथ स्वामी मंदिर के आस-पास बाजार में मिल जाएँगी।
अमरनाथ
भारत एक धर्मप्राण देश है। समय-समय पर यहाँ मंदिरों का निर्माण होता रहा
है और तीर्थस्थलों की स्थापना की जाती रही है। आदिगुरु ने भारत की चारों
दिशाओं में चार तीर्थों की स्थापना की। इन तीर्थों की स्थापना से भारत की
एकता और अखंडता की भावना को प्रोत्साहन मिलता रहा है।
द्वारका, रामेश्वरम् और जगन्नाथपुरी समुद्र-तटीय तीर्थ हैं, तो केदारनाथ, बदरिका-आश्रम, कैलाश मानसरोवर और अमरनाथ पर्वतीय तीर्थ हैं। इनमें से कुछ हिमालय की ऊँची चोटियों पर स्थित हैं तो कुछ हिमालय की उपत्यका में। इन तीर्थों की यात्रा कठिन और समयसाध्य व श्रमसाध्य है। किंतु जिनके मन में अगाध श्रद्धा और आस्था है, उनके लिए कुछ भी कठिन, दुर्गम और कष्टकर नहीं है।
अमरनाथ की तीर्थयात्रा भी कठिन, दुर्गम और कष्टसाध्य है, फिर भी पर्वत-श्रृंखला लिद्दर घाटी के अंतिम छोर पर सँकरे दर्रे में स्थित अमरनाथ गुफा में प्रकृति द्वारा स्वतः निर्मित शिवलिंग के दर्शनों के लिए तीर्थयात्रियों को पहलगाँव से 48 कि. मी. के बर्फीले, पथरीले ऊबड़-खाबड़ मार्ग से गुजरना पड़ता है। फिसलन-भरे, सँकरे रास्ते पर उन्हें पैदल ही चलना पड़ता है। अमरनाथ की गुफा लगभग 100 फीट लंबी, 150 फीट चौड़ी और 15 फीट ऊँची एक प्राकृतिक गुफा है। गुफा में हिम-पीठ पर बर्फ से स्वतः निर्मित शिवलिंग कभी-कभी अपने आप 7 फीट ऊँचा हो जाता है। आश्चर्य की बात यह है कि यह शिवलिंग कभी भी पूर्ण रूप से विलीन नहीं होता। शिवलिंग के अलावा हिम-निर्मित एक गणेशपीठ और पार्वतीपीठ भी है।
इस गुफा के साथ कई आश्चर्यजनक और चामत्कारिक बातें जुड़ी हैं। लिंगपीठ (हिम-निर्मित चबूतरा) ठोस है, जबकि गुफा के बाहर कई मील तक कच्ची बर्फ दिखाई देती है।
द्वारका, रामेश्वरम् और जगन्नाथपुरी समुद्र-तटीय तीर्थ हैं, तो केदारनाथ, बदरिका-आश्रम, कैलाश मानसरोवर और अमरनाथ पर्वतीय तीर्थ हैं। इनमें से कुछ हिमालय की ऊँची चोटियों पर स्थित हैं तो कुछ हिमालय की उपत्यका में। इन तीर्थों की यात्रा कठिन और समयसाध्य व श्रमसाध्य है। किंतु जिनके मन में अगाध श्रद्धा और आस्था है, उनके लिए कुछ भी कठिन, दुर्गम और कष्टकर नहीं है।
अमरनाथ की तीर्थयात्रा भी कठिन, दुर्गम और कष्टसाध्य है, फिर भी पर्वत-श्रृंखला लिद्दर घाटी के अंतिम छोर पर सँकरे दर्रे में स्थित अमरनाथ गुफा में प्रकृति द्वारा स्वतः निर्मित शिवलिंग के दर्शनों के लिए तीर्थयात्रियों को पहलगाँव से 48 कि. मी. के बर्फीले, पथरीले ऊबड़-खाबड़ मार्ग से गुजरना पड़ता है। फिसलन-भरे, सँकरे रास्ते पर उन्हें पैदल ही चलना पड़ता है। अमरनाथ की गुफा लगभग 100 फीट लंबी, 150 फीट चौड़ी और 15 फीट ऊँची एक प्राकृतिक गुफा है। गुफा में हिम-पीठ पर बर्फ से स्वतः निर्मित शिवलिंग कभी-कभी अपने आप 7 फीट ऊँचा हो जाता है। आश्चर्य की बात यह है कि यह शिवलिंग कभी भी पूर्ण रूप से विलीन नहीं होता। शिवलिंग के अलावा हिम-निर्मित एक गणेशपीठ और पार्वतीपीठ भी है।
इस गुफा के साथ कई आश्चर्यजनक और चामत्कारिक बातें जुड़ी हैं। लिंगपीठ (हिम-निर्मित चबूतरा) ठोस है, जबकि गुफा के बाहर कई मील तक कच्ची बर्फ दिखाई देती है।
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लोगों की राय
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